ॐ नमः शिवाय

प्रभु बा

२५ मई १९४३ को राजस्थान के उदयपुर जिले में इटालीखेड़ा गाँव में प्रभु बा (जन्म नाम कल्पना) का जन्म हुआ| आपकी माताजी श्रीमती नाथीबाई पांडे वासुदेव कुटुम्ब में ‘आजी’ के नाम से विख्यात हुए हैं| प्रभु बा एक दिव्य शक्ति के रूप में अवतरित हुए हैं ऐसा आभास अभिभावको को उनके बाल्य काल मे ही हो गया था| लौकिक शिक्षण के स्‍थान पर इन्हें पारलौकिक बातो में ज़्यादा आनन्द आता था| शुरू से ही आप शिवभक्त थी| विवाहोपरांत भी संसार व साधन में अदभुत तालमेल आपने करके दिखाया| द्वितीय संतान चि. प्रवीण की जन्म जात व्याधि ने प्रभु बा के जीवन में एक निर्णायक भूमिका निभाई और आप प. पू. योगिराज गुलवणी जी महाराज  के सानिध्य में आए| एक दिव्य लौ से दूसरी दिव्य विभूति प्रकाशित हो गयी और कल्पना से सुगंधा का अवतरण हुआ| स्वामी शिवोमतीर्थ से सन्यास दीक्षा लेकर आप स्वामी सुगंधेश्वरानंद हुए| तब से साधन व लोक कल्याण का सिलसिला तीव्र हो गया है| आपने पूज्य स्वामीजी महाराज के आदेश से नाम जप साप्ताहिकी का अनुष्ठान प्रारंभ किया है| आपको अनेक बार कई-कई दिन की समाधि लग चुकी है, अध्यात्म जगत् ने आपको परमहंस पद से विभूषित किया हे| सद्‌गुरु श्रद्धा, ध्यान योग, नाम स्मरण और मानव-मांगल्य का सर्वोच्च विधान पूर्ण करने में आप रत हैं | आप कहते हैं — अध्यात्म आनंद और उत्सव का मार्ग है| अध्यात्म में कुछ खोना नहीं होता वरन अपनी सोई शक्तियों के जागरण से प्रतिपल बहुत कुछ पाना ही है| उनका मानना है कि सन्यास तन के बजाए मन से योजित है, साधन-पथ कभी विराम को प्राप्त नही होता, सातत्य इसका विशिष्ट गुणधर्म है। आपकी कृपा से साधक चित्त को निर्विकल्प, निर्विचार, निर्लिप्त अवस्था में ले जाने में सफल हो जाता है| आप द्वारा निरदृष्ट ध्यान का फल आधि, व्याधि और उपाधि से मुक्ति है| आप द्वारा स्थापित काशी शिवपुरी आश्रम गुरुद्वार है| त्रैलोक्य आश्रम, वृंदावन आश्रम व त्रिशूल आप द्वारा स्थापित साधना स्थलिया हैं| देश में अनेक शिवकेंद्र आप द्वारा अनुप्रेरित हैं| आप शक्तिपात साधना के अधिकारी संत हैं| आपका भ्रमण क्षेत्र मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बंगाल, उत्तरप्रदेश व गुजरात है| वासुदेव कुटुम्ब आपको सद्‌गुरु व जगदंबा के स्वरूप में मानता है| अतः साधको के प्रेमाधीन होकर अपने-अपने अध्यात्मिक जगत् को एक परिवार का स्वरूप प्रदान किया है| वे ही इस परिवार की मुखिया, पालनहार, तारक व सर्वकल्याणक हैं|

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